Sunday, September 8, 2013

Poet's brain demystified

Shall we go and try to purchase a real good brain ? A poet's brain


एक दिन निकले थे बाज़ार में खरीदने शायराना  दीमाक
मुफ्लिसे जा पहुंचे डोक्टर के घुसल्खाना
कहने लगा की मुद्दत से मेरी नज्मे बहुत ख़राब
सोचके बताईये क्या करें जनाब ?

चेक करके मेरी खोपड़ी कहने लगा हुज़ूर
भेजें में घुस गया है कोई आपके फतूर
बोला बदलना होगा यह भेजा हजूर का
बस येही इलाज़ है दीमाकी फतूर का

कहने लगे की दान मांगिये फिर देखिये कमाल
शायराना दीमाक मिलती है सौ गंतादार
पहले तो एक शायर अ अज़म्म से मिला
बर्बादी अ दीमाक का उनसे किया गिला

मैंने कहा की मुझ पर कर्म कीजियेगा जनाब
थोडी सी अपनी खोपड़ी मुझको इंनायत करे शताब
बोले हमारा बैट के भेझा ना खाईये
उठिए यहाँ से और कहीं सीटी बजाईये

शायराना अदब में जो भी हमारा मुकाम हैं
उस्ताद ये मुह्तेरिम के वो भेझ्हे का काम है
कुछ सरफिरा दीमाक हसींन लड़कियों के थे
बक बक जो कर रहे थे वो सब बीवियों के थे

मैंने कहा ब्रेन कोई आशिकाना दे
जल्दी से इक दीमाक मुझे शायिराना दे
दिखला के इक दीमाक वो कहने लगा जनाब
रग रग में है फंसे हुए अशार बेहिसाब

भेजा महक रहा है ज़माने की धाड़ से
लबरेज़ है दीमाक ग़ज़ल के मुवाड़ से
मैंने कहा ये मखियाँ क्यूँ बिन बिनाई हैं
बोला नयी ग़ज़ल पे नयी धुन बिटआयी है

मैंने कहा की दाम बताये मुझे शताब
बोला दीमाक ठीक है और दाम है खराब
भेझा मेरे दूकान पे सब आणा पाई है
शायर का बस दीमाक के पैसे भी हाई है

मैंने पूछा के खोल दे तू राज़ यह निहां
शायर के क्यूँ दीमाक के पैसे किये बेशुमार
बोला कभी कभार यह बिकता है,क्या करें
सौ फोडिये तो एक निकलता है , क्या करें !!

- रूहुल हक






No comments:

Post a Comment