Sunday, October 28, 2012

Pukar !

अकल्मंदो की इस भीड़ में हँसते हैं नवाब्ज़ादे !
किश्तों में मरते हैं रात दिन देश की फस्सादे !
कौन लौत्ताये इस मंहूस जनता की आन !
लड़ते हो तो लड़ो ,लेकिन रखो वतन की शान !

आज एक आग की शोला भड़की है !
रस्ते पर आक्रोश की ज्वाला चद्की है !
कागज़ पर चला सन्नाटे की वार !
बड़े पैमाने पर हुआ हाहाकार !

लौट चलो मानुष , अपनी अस्तित्व पहचानो !
करो बदलाव इस तरह की अपने अपनों को जानो !
जाग जाए समुन्दर बि अपनी लकीरों से दूर !
बहता दरिया बी करे मिलन की आस ज़रूर !

दिल ने सुनी यह जो पुकार !
बदल दिया इंसानों की परिभाषा अपरम्पार !
जब होगी अकल्मंदो की सम्पूर्ण विज्ञात !
तब होगा देश विकसित और सम्राट !

लेखक
रूहुल हक 

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