Saturday, December 1, 2012

Shakshiyat !!

शक्शियत

हम थो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ दिल की गली में खेले थे

एक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के
एक तरफ आंसूओ के रेले थे

थी सजी इचायें दुखानो पर
ज़िन्दगी के अजीब मेले थे

खुदखुशी क्या दुखो  का हल बनती
मौत के अपने सौ झमेले थे

ज़हनो दिल आज भूके मरते हैं
उन् दिनों हमने फाके झेले थे

हमको उत्तना थो मूंह अँधेरे थे
लेकिन एक ख्वाब हमको घेरे थे

खुश्शकल भी है वो ,ये अलग  बात है, मगर
हमको समझदार लोग हमेशा अज़ीज़ थे

हमने किश्तों में ज़िन्दगी सादी है,मुहाफ़िज़
मंजिलो  की लकीर कुछ और ही थे

आओ साथ निबाह सको थो राही,
कुछ बातें और गुफ्तगू स्याही पे भी थे






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