ग़ज़ब धाये हो रे बरसाती रात
सुनसान रास्तो पे कतराती रात
बौचंक कुतो से परहेज़ मंडराती रात
आंसू के बौछार से ये शामत रात
इस रात की एक मस्त लम्हा
क़ब्र से झाँकती सनाटे से एक बुडिया
मचलती इत्लाती लाटी की टोंक
उसपे बजती दूर से शहनाई
कुछ दूर और बारिश की कपकपाहट
बूंदों का फर्श पर झिलमिल स्पर्श
ऐसे लगता दूर देश का कोई गवया
अपनी चाल से मदमस्त सरूर
यह रात !! कैसी है ये रात
कुछ दूर आदम मानुष थकाहारा
अपने दिन का भोज बोत्तली खोले
एक गूंट पि जाता है
अश्को में नाज़ ये नफरत लिए
अगले दिन का इंतज़ार करता है
तांगा अपनी मंजिल दूंड़े घलियो में
इंसानों से परहेज़ कह्खानो में
इत्लाठी सी वो बुडिया घर दूंद्ती
अपने ही जन साजो में
यह रात !! कैसी है ये रात
Super Roohul.
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