Tuesday, December 25, 2012

Shrishti

नम्सतुतॆ श्रृष्टि के विदात्था नम्सतुते
कष्टे माथरुष सफ़्फ़े जनशव स्तम्भ्वने
मनस श्लोचन करे पुष्ठीन विलम्भन
कछु नहीं सकत रचे भाव

अवलोचन मात्र करियो नहीं सक्की
कर सेवन और पूजन विचार
अन्थार्यामी शुद्दि कर समर
रहू थु जीवन सचार

क्या शुथ्र महक जन साधू
ब्रष्ट तपो जित कटु लचार
शशश्य मस्तिष्क रचे बिन त्यागी
 कोती से चरे मार मार

लजअत उददजत मरजत कट्जत
दास्तानों श्रृष्टि उप्पज
विष्लिज मानवता सौ प्रहार
कचू न होंवे तरार

---रूहुल हक


Khanabadosh

इस कविता का प्रेष्ट्चिन्न उन् लोगो में देखता हूँ  जो कामघर  दूर प्रदेशो से आते हैं और अपनी पहचान बैंगलोर में बनाने में जुट जाते हैं




शाम होते ही ऐसा लगता है
सूरज अब दलने को हैं
सडको पर मंडराती वाहनों की आवाज़
कुछ सजनो को घर विराम्तहा छोड़ने को है

और उसके परे कुछ परिंदे
कतारे बनाए उन्ही जंगलों को चले
जिनके पेड़ो की शाकाओं पे हैं घोसले

यह परिंदे वहीँ लौटकर जाएंगे
और सो जायेंगे
सबका अपना घर होता है
लेकिन इन् काम्घरो का आशियाना
सालो बेनाम होता  हैं

हम भी हैरान हैं
इस मकानों के जंगलों  में
इनका कही भी टिकाना नहीं
शाम होने को हैं
यह सब अब कहाँ जायेंगे ?

आशियाना ही थो मांगते है आसमान के तले
फिर ऐसा क्यों होता है,जनसाजो
मुफलिसी की नींद सोते हैं ?


--- रूहुल हक






Raaste (Highway)

An enigmatic piece of work for the trailblazers of the society...

yeh jo jeevan ki kashti hai..ek raasta nahi...
dho raah hai..

Pahla raasta bahoot hi aasan hai
issme koi modh nahi hai
ye raasta
iss duniya se bejodh nahi hai
iss raaste par milte hai
reetho ke aangan
iss raaste par milte hai
rishto ke bandhan
iss raaste par chalnewale
kahne ko sabh kuch paate hain
lekin
tukde tukde hokar
sab rishto mein bannt jathe hain
apne palle kuch nahi bachta
bachti hai
benaam si uljhaan
bachta hai
sanso ka eindhan
jisme unki apni har pahchaan
aur unke saare sapne
jal bhujte hain
iss raaste par chalnewale
khudh ko khokar jagh paate hain
upar upar tho jeete hain
andhar andhar mar jaate hain

Doosra Raasta
bahoot hi katin aur dumthod hai
iss raaste mein
koi kisi ke saat nahi hai
koi sahara dene wala haath nahi hain
iss raaste mein
dhoop hai
koi chaav nahi hai
jahaan tasalee bheek mein dede koi kisi ko
iss raaste mein
aisa koi ghaav nahi hain
yeh unn logo ka raasta hai
jo khudh apne tak jaate hain
apno se naaz -e-karam paate hain
tum iss raaste par hi chalna

Mujhe patha hai
yeh raasta aasaan nahi hain
lekin mujhe yeh garv bhi hain
tumko apni pehchaan tho hain
tumko apni pehchaan tho hain..

Iss pehchaan ko bekaraar rakna..

khuda hafiz...






Saturday, December 1, 2012

Raat !! ( Night)




ग़ज़ब धाये हो रे बरसाती रात
सुनसान रास्तो पे कतराती रात

बौचंक कुतो से परहेज़ मंडराती रात
आंसू के बौछार से ये शामत रात

इस रात की  एक  मस्त  लम्हा
क़ब्र से झाँकती सनाटे से एक बुडिया
मचलती इत्लाती लाटी की टोंक
उसपे बजती दूर से शहनाई

कुछ दूर और बारिश की कपकपाहट
बूंदों का फर्श पर झिलमिल स्पर्श
ऐसे लगता दूर देश का कोई गवया
अपनी चाल से मदमस्त सरूर

यह रात !! कैसी है ये रात

कुछ दूर आदम मानुष थकाहारा
अपने दिन का भोज बोत्तली खोले
एक गूंट पि जाता है
अश्को में नाज़ ये नफरत लिए
अगले दिन का इंतज़ार करता है

तांगा अपनी मंजिल दूंड़े घलियो में
इंसानों से परहेज़ कह्खानो में
इत्लाठी सी वो बुडिया घर दूंद्ती
अपने ही जन साजो में

यह रात !! कैसी है ये रात



Shakshiyat !!

शक्शियत

हम थो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ दिल की गली में खेले थे

एक तरफ़ मोर्चे थे पलकों के
एक तरफ आंसूओ के रेले थे

थी सजी इचायें दुखानो पर
ज़िन्दगी के अजीब मेले थे

खुदखुशी क्या दुखो  का हल बनती
मौत के अपने सौ झमेले थे

ज़हनो दिल आज भूके मरते हैं
उन् दिनों हमने फाके झेले थे

हमको उत्तना थो मूंह अँधेरे थे
लेकिन एक ख्वाब हमको घेरे थे

खुश्शकल भी है वो ,ये अलग  बात है, मगर
हमको समझदार लोग हमेशा अज़ीज़ थे

हमने किश्तों में ज़िन्दगी सादी है,मुहाफ़िज़
मंजिलो  की लकीर कुछ और ही थे

आओ साथ निबाह सको थो राही,
कुछ बातें और गुफ्तगू स्याही पे भी थे